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गुरुवार, सितंबर 30, 2010

आनंद प्रस्तुति – नीलम शर्मा अंशु

नन्हें शोनामोनी माधव के ब्लॉग पर देखा कि 26सितंबर से 02अक्तू. तक Joy of giving Week  के लिए शुभकामनाएं दी गई हैं।  सचमुच देने का जो आनंद है, उसका अहसास आज बड़ी शिद्दत से हुआ।

आज सुबह (9  बजे से 10 बजे तक) एफ. एम. रेनबो (कोलकाता) पर लता जी पर लाईव प्रोग्राम था छाया लोक में। नए-पुराने गीत मिलाकर नौ गीत
चुने थे क्योंकि एक घंटे के प्रोग्राम में कंपेरियरिंग तथा फोन कॉल्स मिलाकर कुल इतने ही गीत बज पाते हैं। और तिस पर अगर फरमाईश आ जाए तो फिर मत पूछिए। वैसे फरमाईश का प्रोग्राम शनिवार की शाम विशेष रूप से होता है।  वैसे तो हम पुरज़ोर कोशिश करते हैं कि फरमाईशी प्रोग्राम न होते हुए भी जहां तक संभव हो लोगों की पसंद पूरी हो जाए।

आज के प्रोग्राम में पहले कॉलर थे डानकुनी से सुजीत और दूसरे नैहाटी से राजू। दोनों को ही आज पहली बार लाईन मिली थी । राजू ने तो पुष्टि कर दी थी। दोनों ही से ऑन एयर बात नहीं हो पाई क्योंकि जब मैंने उन्हें ऑन एयर लिया तो वे नदारद थे। राजू ने हैंडसेट पर कहा था कि  रफ़ी साहब के साथ लता जी का कोई डूयेट सुनवा दीजिएगा। मैंने कहा था कि छायालोक में न हो सका तो सवा दस बजे गोल्‍ड पर सुनहरे दिन में सुनवा दूंगी। ज़रूर सुनिएगा। किशोर ने भी फोन किया था बाली से।  इसके बाद साल्किया से आए विशाल। विशाल ने शुक्रिया अदा किया कि प्रोग्राम बहुत अच्छा हो रहा है। 22 सितंबर को मेरे कुमार शानू पर किए गए प्रोग्राम के लिए भी उन्होंने धन्यवाद देते हुए कहा कि शुक्र है मुझे आज बहुत दिनों के बाद आपके प्रोग्राम में लाईन मिल गई। आपके प्रोग्राम में इतने लोग फोन करते हैं, लाईन बिजी रहती है, लाईन ही नहीं मिलती। साथ ही विशाल ने यह भी कहा कि लता जी का एक गीत है कच्चे धागे फ़िल्म में ऊपर खुदा नीचे आसमां जो कि आज तक छायालोक में कभी नहीं बजा। मैंने जान-बूझकर पूछा कि कभी नहीं बजा उन्होंने कहा, जी हां कभी नहीं बजा। हो सके तो कभी आप बजा दीजिएगा या आज ही बजा दीजिएगा। मैंने इतने आत्मविश्वास से जान-बूझकर पूछा था क्योंकि मेरे पास यह सी. डी. उपलब्ध थी और मैं इसमें से लता जी का शानू के साथ दोगाना बंद लिफ़ाफा़ दिल मेरा इसे खोल कर पढ़ लो जी बजाने वाली थी। लेकिन विशाल की बात सुनकर मैंने उनकी पसंद का गीत बजाया, चूंकि यह जैसा कि उन्होंने कहा था कि कभी नहीं बजा तो मैंने सात मिनट का यह गीत पूरा बजाया (यही प्रोग्राम का अंतिम गीत रहा)और मुझे बहुत खुशी हुई कि कई बार तो हम फरमाईश तुरंत पूरी कर देते हैं संभव न हो तो किसी अगले प्रोग्राम में बजाने का वादा करके बजा देते हैं लेकिन आज मैं तुरंत उसे बजा पाई, यह एक संयोग था कि वह गीत मेरे पास उपलब्ध था। इसलिए बहुत खुशी हुई। श्रीकांत जी ने बहुत अच्छी बात कही कि लता जी के नाम LATA  में देखिए कितना अच्छा संयोग है कि  LA में लय है और TA  में ताल। गुलाम मिर्ज़ा ने लैला मंजनू से हुस्न हाज़िर है मुहब्बत की सज़ा पाने को गीत की फरमाईश की थी।  एक कॉलर दोस्त का मैं नाम भूल रही हूँ, उन्होंने कहा कि दीदी मुझे बहुत अच्छा लगा रहा है, मैं किसी गीत की फरमाईश नहीं करूंगा क्योंकि मेरी पसंद पूरी हो चुकी है, आप मेरा पसंदीदा गीत (ऐ मेरे वतन के लोगो) पहले ही बजा चुकी है। सुनकर मुझे अच्छा लगा क्योंकि हम पूरी कोशिश करते हैं कि श्रोताओं की पसंद पूरी की जा सके और उम्दा गीतों का क्लेक्शन ही पेश किया जाए।  एक घंटे के प्रोग्राम में कुल सात ही गीत बज पाए। प्रोग्राम समापन की तरफ था, और फोन लेने की गुंजाईश नहीं थी परंतु फोन का रेड सिग्नल बार-बार टिमटमा रहा था। मैंने फोन रिसीव कर लिया तो लाईन पर बालक थे, कहा प्रोग्राम के दौरान तो लाईन ही नहीं मिल पाई। वैसे पता नहीं मैंने ग़लती की या नहीं, आप ही बताईए। आपका प्रोग्राम सुनने की ख़ातिर मैं आज कोंचिंग में नहीं गया। मेरी हर मंगलवार और शुक्रवार को कोचिंग की क्लास होती है। चला जाता तो इतना बढ़िया प्रोग्राम और जानकारियां मिस हो जातीं। मैंने कहा, कब तक कोचिंग मिस करते रहेंगे आप, एक काम कीजिए घर पर या दोस्तों से कहिए कि वे आपके लिए प्रोग्राम रिकॉर्ड करके रखा करें ताकि लौट कर आप सुन सकें, न तो क्लास मिस होगी और न ही प्रोग्राम के मिस होने का अफसोस होगा। उन्होंने कहा, सही कहा आपने, आगे से दोस्तों से कह कर रखूंगा।



सवा दस बजे से ग्यारह बजे तक एफ. एम. गोल्ड पर सुनहरे दिन प्रोग्राम पेश किया। मुगल-ए-आज़म के प्यार किया तो डरना क्या से शुरू कर दूसरा गीत बजाया दो रास्ते से बिंदिया चमकेगी। फिर मधुमति से चढ़ गयो पापी बिछुया और बीस साल बाद से कही दीप जले कही दिल गीत बजाए।  फिर गुलाम मिर्ज़ा की फरमाईश वाला लैला मंजनू का गीत बकायदा उनके नाम के उल्लेख के साथ पेश किया और उसके बाद राजू की फरमाईश के अनुसार पाकीज़ा से रफ़ी सागब का डूयेट चलो दिलदार चलो, चाँद से पार चलो सुनाया। तब तक 10 बजकर 40  मिनट हो चुके थे कि अचानक स्टुडियों में इंटरकॉम बज उठा और उधर से डयूटी ऑफिसर ने कहा कि आपके पास आनंद फिल्म से लता जी का न रे जीया लागे न गीत हो तो बजा दीजिए डयूटी रूम में बर्धवान से कॉलर का फोन आया है। गीत कंप्यूटर में उपलब्ध था तो उस फोन कॉल का ज़िक्र करते हुए मैंने वह फरमाईश पूरी कर दी। इसके बाद बजाया जुगनू फिल्म से किशोर कुमार के साथ डूयेट गिर गया झुमका गिरने दो। यह गीत बज ही रहा था तथा सिर्फ़ एक गीत बजाए जाने की ही गुंजाईश बची थी कि फिर से डयूटी रूम से फोन की घंटी बज उठी और कहा गया कि सत्यम् शिवम् सुंदरम् के लिए फोन आया है, बजा देंगी क्या ? मैंने डयूटी ऑफिसर से कहा कि यह गीत मैं रेनबो छायालोक में बजा चुकी हूं। डयूटी ऑफिसर ने कहा, ठीक है मैं कॉलर से कह देती हूं। फिर मुझे लगा कि इस कॉलर ने वह प्रोग्राम नहीं सुना है तभी तो इस गीत की फरमाईश की है। चलो आज का दिन लता जी के नाम ही तो है, यह गीत बजा दिया जाए। जैसे ही गिर गया झुमका ......चल गया जादू ....गीत ख़त्म हुआ, मैंने कहा कि भई लता जी का जादू लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है, लोग डयूटी रूम में फोन करके फरमाईश कर रहे हैं, हलांकि सत्यम्........ मैं छायालोक में बजा चुकी हूँ चलिए एक बार फिर सुनहरे दिन प्रोग्राम में बजा ही देते हैं और इस अंतिम गीत के साथ मैंने श्रोताओं से विदा ली। डयूटी रूम में वापिस आई तो डयूटी ऑफिसर ने खुश होकर कहा कि बहुत अच्छा प्रोग्राम गया, फोन वाले श्रोता भी खुश हो गए और जाते-जाते भी आपने सत्यम् शिवम्.......बजा ही दिया। आपने तथ्य भी बहुत अच्छे पेश किए। बहुत अट्छा लगा। मुझे भी दिन भर अपनी परफार्मेस पर बहुत खुशी रही कि मैं सबकी पसंद पूरी करने में कामयाब रही। और आकाशवाणी से निकलते हुए रास्ते में मुझे शोनामोनी माधव राय के ब्लॉग पर पढ़ा शीर्षक याद हो आया तब तो मेरी खुशी और भी बढ़ गई। लता जी से संबंधित तथ्य मैंने संस्कृति सरोकार और समवेत स्वर बलॉग पर डाले हैं। समवेत स्वर पर तो मयूर मल्हार जी ने टिप्पणी मे लिखा है कि ये पोस्ट लीक से हटकर है, क्या बात है, बधाई।

प्रस्तुति नीलम शर्मा अंशु